नियतिकृतनियमरहितां
ह्लादैकमयीमनन्यपरतंत्राम_।
नवरसरुचिरां निर्मिति -
मादधती भारती कवेर्जयति।।
अर्थात :- कवि की वाणी, भाग्य-कर्म के नियम से बंधन मुक्त है, एकमात्र आनंद का स्रोत है, पूर्णतः स्वतंत्र है, नौ रसों (श्रृंगार,करुण, अद्भुत आदि) से सुन्दर काव्य के रूप में परिणत होती हुई सर्वोत्कृष्ट रूप धारण करती है।
इसका मतलब यह है कि कवि या लेखक जो कुछ भी लिखता है, उस पर संसार का कोई नियम लागू नहीं होता, वह सिर्फ़ सहृदय पाठक के आनंद के लिए काव्य लिखता है, उसकी नायिका परी बन कर आसमान में उड़ सकती है, उसका नायक आसमान से तारे तोड़ कर ला सकता है, वह तोते में किसी की जान क़ैद कर सकता है, वह दिन को रात, रात को दिन कर सकता है, वह ज़मीन में तारे आसमान में फूल उगा सकता है, वह तालाब का पानी बहा सकता है, झरने का पानी रोक सकता है,...., वह जैसा लिखना चाहे, लिख सकता है, उस पर किसी का कोई अंकुश, कोई बंदिश नहीं। प्रेम,क्रोध,आश्चर्य, उत्साह, शोक आदि सभी भावों के नए-नए प्रयोग से वह एक नए रोचक, सुन्दर और उत्तम काव्य को लिख कर अमर हो जाता है।
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ReplyDeleteRight of Kavi is right and important 👍👏👌
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