Wednesday, September 16, 2020

The Times of Pandemic

                   कोविल-काल 

नोट:-  यह लेख, लेखक की कल्पना पर आधारित है। इसके सभी पात्र काल्पनिक हैं। यह  किसी भी प्रकार की यथार्थ वस्तुस्थिति का दावा नहीं करता। इसका लक्ष्य किसी भी सहृदय के हृदय को आहत करना नहीं है, यदि अनवधानवश ऐसा हो जाता है, तो उसके लिए लेखक क्षमायाची है।  

     इस लेख का शीर्षक 'कोविल-काल' ही है, इसमें कोई टाइपिंग (typing) की त्रुटि नहीं है। संस्कृत व्याकरण में सूत्र है 'डलयोरभेदः'अर्थात् 'ड' और 'ल' में अभेद होता है। इसके शीर्षक में 'ड' के स्थान पर 'ल' का प्रयोग किया गया है। लेखक द्वारा इस प्रयोग का प्रयोजन दुःश्रवत्व दोष का परिष्कार एवं पद-लालित्य का लोभ मात्र है। 

    इतिहास गवाह है कि इतिहास में दर्ज होने वाला ऐसा अविस्मरणीय काल अभी तक के इतिहास में नहीं आया। हॉलीवुड की मूवी, फिक्शन या ड्रामे में ही ऐसा गुमान किया जा सकता था। हक़ीक़त में तो इसकी कल्पना, कल्पना ही थी। अब तो विश्वव्यापी चाइना के माल की तरह कोविड-19 भी घर-घर में आसानी से सस्ता व सुलभ हो गया है। ऐसा कलियुग आना ही था, जिसमें सारे रिश्ते-नाते क़ब्र में न जाने कब से पैर लटकाए थे कि ताबूत में आख़िरी कील कोविड ने ठोंक दी और सारे रिश्तों का जनाज़ा एक ही झटके में निकल गया।

      भारतीय दर्शन की थ्योरी (theory) में 'क्षणभंगुर' शब्द का प्रयोग पढ़ा था। आज के दौर में यह क्षणभंगुरता 4G की स्पीड से प्रैक्टिकल रूप धारण कर रही है। अगले क्षण क्या होने वाला है, पता नहीं। एक क्षण पहले जो था,वह रहा नहीं।

     शुरू-शुरू में नई-नवेली दुल्हन की तरह हमारे यहाँ भी ताली-थाली बजाकर, दिया-बत्ती करके इसका भी ख़ूब स्वागत किया गया,पर कितने दिन मुँह दिखाई चलेगी। जैसे नववधू की मेहँदी का रंग उतरते ही चूल्हा-चौका थमाने का बंदोबस्त कर दिया जाता है, वैसे ही कब तक कोई इस मुई महामारी का मुँह देखेगा?अब पुरानी जो हो गई ।

      इंडिया चाइना के बीच तना-तनी के दौरान हमारे यहाँ सारे चाइनीज़ ऐप बैन (ban) कर दिए गए और मेड इन चाइना (made in China) का जोशो-ख़रोश से बहिष्कार होने लगा। इसी बीच तेज़ी से पाँव पसारता हुआ कोरोना मानों मुँह चिढ़ाकर चैलेंज (challenge) देने लगा कि हिम्मत है, तो मुझे भी बैन करके दिखाओ। इतना कहना था कि 'आता मांझी सटक ली', 'यह देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का', यह कहकर हमनें भी मानों इनका चैलेंज स्वीकार कर कमर कस ली। बहुत मुँह देख लिया इस महामारी का। अब तो कोरोना की ऐसी की तैसी! मरना तो एक दिन सबको ही है तो फिर भूख से क्यों मरें । खा-पी कर मरें। आज़ाद पंछी को पिंजरे में कोई कब तक लॉकडाउन (lockdown) कर सकता है? पिंजरा टूटा पंछी फुर्र। 

    सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing) को पंचर करते हुए सभी निडर होकर घरों से निकल पड़े। भ्रम में पड़ने कि ज़रूरत नहीं ; मास्क कोरोना के डर से नहीं, बल्कि चालान न कट जाए इस डर से हेलमेट के जैसे लटकाए हुए दिख रहे हैं। जहाँ धर-पकड़ का माहौल देखा, वहाँ मास्कमैन नहीं तो आज़ादमैन। पुलिस वाले भी खुल्ल्मखुल्ला गले में मास्करूपी हार पहने ठग्गू की दुकान में ठंडी लस्सी और गरम समोसे का मुफ़्त में लुत्फ़ उठा रहे हैं। 

    बी०एड्० की परीक्षा में परीक्षार्थियों को बेरोज़गारी का जितना खौफ़ है , उसके आगे कोरोना किस खेत की मूली है। शराब की दुकानों पर उमड़े हुजूम को देखकर कोरोना कंफ्यूज़ (confuse) है कि डरना है कि डराना है।

     पूरे विश्व में जहाँ इसके कारण हाहाकार मचा है,वहीं भारतीयों के हौसले बुलंद हैं। हम इम्यूनिटी (immunity) में नंबर वन हैं। जब हम नल का पानी, कैमिकल (chemical) वाली सब्ज़ी व फल, रोड साइड चाट-पकौड़े, गोलगप्पे आदि खाकर हज़म कर सकते हैं तो कोरोना को हज़म करना कौन सी बड़ी बात है?

    जैसे हाड़ कँपाती सर्दी में छोटे बच्चों के लाख ना-नुकुर करने पर भी आख़िरकार पकड़ कर नहला ही दिया जाता है। पानी ठंडा हो तो क्या कहना! वैसे ही हाथ पैर धोकर फाइनल ईयर के छात्रों को भी ठीक से नहलाने-धुलाने का इंतज़ाम कर ही लिया गया है। ये तो बच्चे हैं, नहाने की अहमियत ये क्या जानें ? हम जानते हैं, इसीलिए तो अपने फ़र्ज़ से फ़ारिग़ हो रहे हैं। 

    कुछ कायर-डरपोक पेरेंट्स (parents) की वजह से स्कूल नहीं खोल पा रहे, नहीं तो अब तक कब का स्कूल खोलकर धुआँधार पढ़ाई चालू हो जाती। न जाने कितने डॉक्टर, इंजीनियर आई.ए.एस. (I.A.S) आदि इसी कोविल काल में पैदा हो जाते।

    बच्चों के न रहने पर भी टीचर नियमित रूप से आकर उनकी अनुपस्थिति में उपस्थिति की कल्पना कर स्कूल को सजा-सँवार रहे हैं। ऑनलाइन टीचिंग (online teaching) में समर्थ टीचर सुबह से शाम तक मोबाइल को सीने से लगाए दिलो जान से अपनी सेवाएँ देने के साथ ही फ़ीस बिल को समय पर पकड़ाना नहीं भूल रहे। साथ ही कभी-कभी लेट फ़ीस, ट्रांसपोर्ट फ़ीस आदि भी वसूलने में कोई भूल-चूक नहीं कर रहे।

     बच्चे जो हर वक़्त मोबाइल पर गेम खेलने के लिए डाँटे-मारे जाते थे, उनकी तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई। पूरा का पूरा प्रसाद उनकी झोली में आ गिरा। ऑनलाइन टीचिंग के बहाने जो मोबाइल मिलने का सुअवसर मिला है, पुरानी सारी कसर अब निकाल ले रहे हैं। माँ-बाप मुँह ताकते रह जाते हैं। करें भी तो क्या करें! बड़े बेबस हैं। वीडियो, ऑडियो ऑफ़ करके मज़े से FAU-G खेल रहे हैं। पकड़े जाने पर सॉरी (sorry) बोलना उनका तकिया कलाम बन गया है।

   सभी का शब्दकोशीय ज्ञान बढ़ गया है। नए-नए शब्द सीख गए हैं। लॉकडाउन के कारण वातावरण शुद्ध हो गया है, चिड़ियाँ चहचहा रहीं  हैं, मोर नाच रहे हैं। जंगली जानवर को फ़िक्र होने लगी कि सारे इंसान कहाँ गए? इसका पता लगाने वे भी गाँव-शहरों में दिखाई पड़ रहे हैं।  

    जंगल में मोर नाचा किसने देखा?आजकल के मोर जंगल में नाचने के बजाय भरी महफ़िल में नाचने में ज़्यादा रुचि ले रहे हैं। ज़्यादातर तो लोग नाचने में कम नचाने में ज़्यादा विश्वास रखते हैं।वे जब भी नाचते हैं तो उनका फ़रमान व अरमान होता है कि लोग हाथ नचा-नचा कर दम मारो दम के जैसे झूम उठें।आँखें बंद करके वाह नाच! वाह नाच! के दम भरें।

      सोशल डिस्टेंसिंग ने सोशल एक्टिविटीज़  पर बैन लगा दिया है। काहिली का आलम ऐसा हो गया है कि जम्हाई आने पर हाथ मुँह को बड़ी मुश्किल से जैसे-तैसे पहुँच ही रहा होता  है,  वैसे ही मोबाइल पर कॉलर ट्यून बज उठती है। एक अरसा हुआ कान में उँगली डाल के खुजाए हुए। यहाँ भी आपस में सोशल डिस्टेंसिंग चल रही है। आँख, कान, नाक सब तो आपस में पहले से ही दूरी बनाए हुए थे। एक हाथ ही था, जो सब से मिलने-मिलाने का काम करता था, उसे भी अब मना कर दिया गया है। 

  कई वर्षों से इलाज कराने के बावजूद नाकाम कई नि:सन्तान दम्पतियों के यहाँ  इसी बीच किलकारी गूँज उठी है। कुछ ने तो इस काल से प्रभावित होकर नवजात का नामकरण भी इस प्रकार कर लिया है- कोरोना कुमारी,लॉकडाउन कुमार आदि। महिलाओं के ब्यूटी पार्लर, शॉपिंग एवं कामवाली बाई के ख़र्चे कम होने से पति राहत की साँस ले रहे हैं। इतनी बचत हो गई है कि प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करने की सोच रहे हैं। सबके असली चेहरे सामने आ रहे हैं। घर में काम और घर के काम करने की आदत पड़ रही है। बर्तन घिस-घिस कर हाथ में घिट्टे पड़ गए,जो दर्जनों दाग़-धब्बे मिटाने की क्रीम लीपने के बाद भी मिटाए नहीं मिट रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानों पैदाइशी निशान हैं। 24 घंटे पत्नियों की चौकीदारी में रहते-रहते ऑक्सीजन की कमी महसूस होने पर मित्र-मंडली रूपी वेंटीलेटर की शरण में बतियाकर हालत में सुधार कर तरोताजा़ महसूस कर रहे हैं।पत्नियों की पैनी नजरों से बच पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। हां, कुछ दिन पतियों को घर में रहने में दिक़्क़त ज़रूर महसूस हुई, पर अब  अनलॉक (unlock) हो जाने से पान की गुमटी पर मित्र-मंडली के साथ गिलौरी चबाकर,पान की पीक से दीवारों पर पच्चीकारी कर, बतकही के असीम-आनंद का अनुभव कर रहे हैं। वैसे भी पति प्रजाति ही ऐसी है कि वह पत्नियों को चकमा देने में माहिर होती है। ये चाहे घर में हो या बाहर कुछ न कुछ जुगाड़ लगा ही लेते हैं।

   कुछ नव-युगल जो डेट-फिक्सिंग के मैदान में अभी कच्चे खिलाड़ी थे। पक्के होने की राह  पकड़ उड़ान भरने ही वाले थे कि इस महामारी का एयरपोर्ट (airport) पर जो़र-शोर से इस्तक़बाल हो गया। इनकी तो गई भैंस पानी में। बड़ी मान मनौती कर पहली डेट फ़िक्स हुई थी। ब्रांडेड जींस, शर्ट, घड़ी,चश्मा, डिओडरेंट्स, गिफ्ट्स, न जाने कितने पैसे ख़र्च करके इतना इंतजा़म व इंतजा़र किया था, इस घड़ी का कि यह मनहूस घड़ी आ पड़ी, घड़ों पानी पड़ गया सारे अरमानों पर। कजरारे नैनों के तीखे तीरों ने अब मजबूरी में मोबाइल माध्यम से ही चुभने को मंज़ूरी दे दी है। अब तो ऑनलाइन मोहब्बत ही जीने का सहारा बन गई है।

    जो काम बड़े-बड़े समाज सुधारक न कर सके, वह एक छोटे से कीड़े ने कर दिखाया।शादी ब्याह की शुरुआत ही कैश (cash) के लेन-देन से होती थी जो अब कैशलेस (cashless) हो गई। बारातियों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। दहेज के सामान को भी लोग हाथ लगाने से कतरा रहे हैं।

     शैक्षणिक क्षेत्र में वेबिनार्स (webinars) की तो बाढ़ आ गई है। सभी बहती गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। इतने सर्टिफिकेट्स इकट्ठा हो गए हैं कि इन का बोझ अब उठाए नहीं उठ रहा। आगे से इंटरव्यू में जाने पर एक ठेलिया किराए पर लेनी पड़ेगी, जिसमें यह सभी लादकर इंटरव्यूस्थल पर समय से पहुँचा जा सके। 

   सभी अपनी अपनी प्रतिभा व मेधा का सदुपयोग करने में लगे हैं। कोई गोमूत्र को कोरोना मारक बता रहा है तो कोई वैक्सीन ईजाद करने का दावा कर रहा है। ऐसे काल में महान दानियों ने भी दान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।  अपने काका कामदेव जिनके हम परमभक्त हैं, उनसे भी बड़े काम की उम्मीद थी, मेरा मतलब दान की उम्मीद थी। काम तो उन्होंने बड़ा कर दिखाया,कोरोकिल बनाकर, पर दान के नाम पर दाम चस्पा कर कंजूसी कर गए। 

    जहाँ एक ओर बॉर्डर पर सैनिक तैनात हैं,  वहीं दूसरी ओर हमारे डॉक्टर अहर्निश इस महामारी में सेवा में लगे हैं। क्या हुआ, इनमें से एकाध प्रतिशत फ़र्ज़ी रिपोर्ट बनाकर पेशेंट को भर्ती करके मोटी रक़म वसूल रहे हैं। एकाध प्रतिशत तो किडनी आदि निकालकर बड़ी सफ़ाई से डेड बॉडी पैक कर के इन अंगों की तस्करी से संपन्न हो रहे हैं। एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, हालाँकि इनके इस कारनामे से बाक़ी डॉक्टर्स के ऊपर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वे देशसेवी समाज सेवा में लगातार लगे हैं। इलाज के दौरान न जाने कितने डॉक्टर अपनी जान की परवाह किए बगैर स्वयं संक्रमित हो गए और अपनी जान तक क़ुर्बान करने में पीछे नहीं हटे।

    सब अपने-अपने काम में पूर्ववत लगकर  दिन-दूनी, रात-चौगुनी तरक़्क़ी कर रहे हैं।चुग़लख़ोरों की चुग़ली और भी चटख़ हो गई है। चोर पहले से ही मास्क व गलब्स पहनते थे लेकिन अब सैनिटाइजर का भी बक़ायदा एहतेमाम कर रहे हैं। चारों तरफ़ पसरा सन्नाटा उनके धंधे में चार-चाँद लगा रहा है। सब कुछ ऑनलाइन होने से हैकर्स की चाँदी हो गई है। बड़े-बड़ों के अकाउंट हैक हो रहे हैं।

   पुलिस अपना काम ईमानदारी से कर रही है।  बड़े-बड़े बदमाश दबोचे जा रहे हैं। शातिर अपराधी भी लगातार मैदान में डटे हुए हैं। मौक़ा मिलते ही कारनामों की हैट्रिक लगा रहे हैं। कई निर्भय निर्भीक होकर इस काल में भी निर्भया जैसे कांड को अंजाम देने से बाज़ नहीं आ रहे। तेजी़ से गिरती हुई इंसानियत की तरह गिरती हुई जीडीपी को लोग सहारा देने में लगे हुए हैं।कुछ अवसरवादी इस सुअवसर को पाकर लगातार घोटालों के चौके-छक्के लगा रहे हैं। नकली दवा, मिठाई, खोया आदि अब यह पुरानी बात हो गई है, आजकल तो नकली सैनिटाइज़र (sanitizer),मास्क, विटामिन-सी आदि फैशन में है। अब तो सब्ज़ी धोने के लिए भी कैमिकल ईजाद कर लिया है, अच्छी कमाई हो रही है।

   अमीर-ग़रीब सभी एक लाइन में हैं। यहां कोई रिज़र्वेशन नहीं; पक्षपात नहीं। अक्कड़-बक्कड़ का खेल चल रहा है, जिस पर उँगली टिक जाए। ओलंपिक्स खेलों में पदक तालिका में तेज़ी  से बढ़त बनाते हुए भारत दूसरे नंबर पर पहुँच गया है। पहले नंबर के लिए मुक़ाबला दिलचस्प और कड़ा होता नज़र आ रहा है।

   ऐसा लगता है मानो मरने का सीज़न आ गया है, लगन सहालग चल रही है। इधर बाढ़ भी आ रही है, भूकंप के झटके भी महसूस हो रहे हैं,बिजली भी कड़क रही है, बवंडर (cyclone) भी आ रहें हैं, न जाने कहाँ से पता पूछते-पूछते टिड्डी दल भी आ पहुँचा।

   उधर मशहूर नामी-गिरामी हस्तियों ने दुनिया को अलविदा कह दिया। एक्सीडेंट्स भी हो रहे हैं। एक दूसरे को मारने-मरने का चलन तो पहले से ही चला आ रहा है, इस काल में भी यथावत चालू है। बचे-खुचे लोग आत्महत्या कर ले रहें हैं।  बाक़ी लोग जीते जी मर रहे हैं या लोग उन्हें जीते जी मार रहे हैं।

   वस्तुतः यह अभूतपूर्व काल उस असीम शक्ति के दरबार में लब्बैक कहने का है और झुक जाने का है। आपसी वैर-वैमनस्य,कटुता-कालुष्य, ईर्ष्या-द्वेष भुलाकर; परस्पर प्रेम, सौहार्द्र, समन्वय से  एक-जुट, एक-साथ, एक-दूसरे के सहयोग करने का समय है।

   हम आगे आने वाली पीढ़ी के सामने  कायर का दर्जा हासिल करना चाहते हैं या इतिहास में  शौर्य-पराक्रम की कथा का विषय बनना चाहते हैं।

      हम हिंदुस्तानियों के हौसले आला हैं, हमारी हिम्मत की दाद देनी ही पड़ेगी। देखते जाइए,   आख़िरकार है तो चाइना का माल। कब तक हिंदुस्तानियों के सामने टिक पाएगा या इन वीर जवानों, बुज़ुर्गों, महिलाओं, बच्चों के जज़्बे को देखकर ख़ुद ही घुटने टेक देगा। सुनने में आया है कि यह म्यूटेट होकर कमज़ोर पड़ गया है।पहले शेर था अब बिल्ली बन गया है। देखते  हैं, ऊँट किस करवट बैठता है? आगे की घटना का हाल-चाल लेकर फिर हाज़िर होंगे, कोविल-काल-2 में। तब तक के लिए घर पर रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें। जय-हिंद ! 

10 comments:

  1. कोविड काल के अमूर्त स्वरूप को व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति देता हुआ एक उत्तम लेख। संस्कृत, दर्शन, इतिहास, हॉलीवुड, बॉलीवुड की फिल्मों के डॉयलॉग, इंडो चाइना रिलेशन, घर, परिवार, समाज, प्रशासन, पुलिस, डॉक्टर, शिक्षा, शिक्षक, इत्यादि सभी विषयों पर कोविडकाल के प्रभाव का एक छोटे से लेख में समावेश। निश्चित रूप से आमजन की भावनाओं की शानदार अभिव्यक्ति। लेखिका की व्यंजनावृत्ति उत्तरोत्तर अभिवृद्धि को प्राप्त होती हुई।

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  2. वाह,बेहतर अग्रलेख। कोरोना काल का सटीक चित्रण। साथ में अनेक नयी जानकारियां भी। डेटिंग सेटिंग का इतना बोध नहीं था।
    लगी रहें अनवरत। जैसे जैसे लेखन में निखार आता जायेगा,लेखनी पाठकों तक सीधी पकड़ बनाती जायेगी।
    मंगलकामना।

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है। भाषा का प्रवाह प्रभावित करता है।

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  4. अति सुन्दर लेख

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  5. अति सुन्दर लेख

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  6. अति सुन्दर लेख

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  7. प्रस्तुत स्थिति का सत्य एवं रुचिकर वर्णन। बहुत खूब��������

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  8. अति सुन्दर पोस्ट.. 🤗🤗

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