Saturday, August 22, 2020

Kaghaz-Qalam

 काग़ज़-क़लम

ये काग़ज़-क़लम न होते, 

तो हम जैसे क्या करते ? 

किससे कहते अपनी बात, 

किसको हाल सुनाते  ? 

ये काग़ज़-क़लम न होते, 

तो हम जैसे कैसे रहते? 

कभी किसी से कुछ न कहते, 

किसको क्या समझाते? 

ये काग़ज़-क़लम न होते, 

तो हम जैसे कैसे सहते ? 

मन ही मन घुट-घुट कर, 

हम अपने ज़ख़्म छिपाते। 

ये काग़ज़ और क़लम न होते, 

तो बोलो हम क्या करते? 


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