काग़ज़-क़लम
ये काग़ज़-क़लम न होते,
तो हम जैसे क्या करते ?
किससे कहते अपनी बात,
किसको हाल सुनाते ?
ये काग़ज़-क़लम न होते,
तो हम जैसे कैसे रहते?
कभी किसी से कुछ न कहते,
किसको क्या समझाते?
ये काग़ज़-क़लम न होते,
तो हम जैसे कैसे सहते ?
मन ही मन घुट-घुट कर,
हम अपने ज़ख़्म छिपाते।
ये काग़ज़ और क़लम न होते,
तो बोलो हम क्या करते?
Very Emotional
ReplyDeleteAre ansu aagye,Dil ko Chu lia
ReplyDeleteBhut accha aaj se Hmbhi Ek diary bna k usme Sab likhenge
ReplyDeleteWonderful
ReplyDeleteNice line dil ko chu gaya hai
ReplyDeleteWooooowww wonderful. Nice line 👌👍👍🤗🤗
ReplyDeletevary nice lines. touching
ReplyDeleteअतिसुन्दर 👍👍👍
ReplyDeleteExcellently impressive
ReplyDeleteVery very important ..
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